राम फिर से लौट आओ

 
जन्म लेकर इस धरा पर
राम फिर से लौट आओ

चीखती हैं आज भी
कितनी कथाएँ
तुम न सीता की समझ
पाए व्यथाएँ
हो गया था क्यों हरण
रहते तुम्हारे
पूछती हैं आज भी
सारी दिशाएँ
जानकी ने ही सदा
क्यों दी परीक्षा
राम जग को ये बताओ

तुम वचन पालक बने
वनवास पाया
उसने पत्नी धर्म तो
तब भी निभाया
तुम सहज कैसे रहे
उस वक्त बोलो
जब अकेले ही उसे
वन में पठाया
क्यों किया इक पल को भी
संदेह उसपर
राम उत्तर ढूँढ लाओ

राम तुमने
रीत ये कैसी चलाई
क्यों सजा सीता को ही
तुमने सुनाई
काश कि अग्नि परीक्षा
तुम भी देते
तो नहीं पुरुषार्थ की
होती हँसाई
दोष त्रेता युग में
जो तुमपर लगे थे
राम अब उनको मिटाओ

जन्म लेकर इस धरा पर
राम फिर से लौट आओ

- रमा प्रवीर वर्मा 
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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