राम जी

 
मन्दिर से बाहर भी निकलो रामजी!
कुछ दिन संग हमारे रह लो रामजी!

कौन चाहता है, औरों को सिर पर ढोना,
कौन चाहता है, आये दिन भूखे सोना,
लेकिन तुमने सबको कहाँ विकल्प दिया है,
जिनको दिया, उन्हीं ने बेड़ा ग़र्क किया है,

लड्डू-पेड़े-बर्फ़ी तो खाते रहते हो,
बासी रोटी भी तो चख लो रामजी!

सभी चाहते, राजमहल में पैदा होना,
सभी चाहते, सोनेवाली फ़सलें बोना,
लेकिन तुमने सबको कहाँ विकल्प दिया है,
जिनको दिया, उन्हीं ने तुमको क़ैद किया है,

अपने बस में कहना-भर है, सो कहते हैं,
मन्दिर छोड़ हृदय में बस लो रामजी!

- राजेन्द्र वर्मा 
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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