रोम रोम में
 

 
रोम-रोम में बसा जो एक राम नाम है
भोर राम नाम है
शाम राम-राम है

राम ही अनादि है राम ही अनन्त है
जीवन है पतझर वो शाश्वत बसन्त है
प्राण तृषित धरती को
राम मेघ श्याम है

श्याम गीत प्रीति का राम नीति - नीति है
आचरण का व्याकरण है नेह की प्रदीप्ति है
हम सब अधूरे हैं
राम पूर्ण काम है

जड़ को चेतन करता चेतना की चेतना
सुख को है सुखदाता वेदना को वेदना
श्वासों में झंकृत स्वर
ललित है ललाम है

- मधु प्रधान
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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