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राम फिर आना पड़ेगा |
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काल कलि में, जन्म दिन अपना मनाने
राम! फिर आना पड़ेगा.
तुम अगर चाहो, बनूँ शबरी
बसूँ बन, जन्म सारा
या अहिल्या-बुत बनी
तकती रहूँ प्रभु पथ तुम्हारा
वेद-व्याख्याएँ मगर होंगी
पुनः आकर सुनानी
ज्यों न मेरा देश भोगे
फिर व्यथा जानी-अजानी
चिर पिपासा शुष्क नयनों की बुझाने
देव! फिर आना पड़ेगा
सिया हित तुमने सियावर
जलधि-जल पर सेतु बाँधा
और रावण से छुड़ाया
पार कर हर एक बाधा
कर रही हैं अब प्रतीक्षा
आज की सहमी सियाएँ
ज़ुल्म की फरियाद लेकर
वे भला किस द्वार जाएँ?
एक पुल उनकी सुरक्षा हित बनाने
नाथ! फिर आना पड़ेगा
धन्य त्रेता-युग हुआ तब
धन्य वो नगरी अयोध्या
जन्म लेकर तात! तुमने
सत्य का जब बीज बोया
फल उड़ा लाई उसी का
रामनामी श्वेत चादर
ओढ़ जिसको फिर रहे
पापी-कुटिल, चालाक-पामर
आवरण उन खल मुखौटों से हटाने
आर्य! फिर आना पड़ेगा
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कल्पना रामानी
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३ |
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