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अपमानों के तीर क्षरो
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हे! मर्यादा पुरुषोत्तम राम
वैदेही की पीर हरो, मैं तब मानूँ
खेतों में, खादानों में
कोठे पर कहीं बज़ारों में
बोझ सरीखी नालों में
बहतीं नदिया के धारों में
हे रघुनन्दन दुःखभंजक राम
नारी मन का नीर हरो, मैं तब मानूँ
सुख -वैभव से आरक्षित
निर्दोष मगर, निष्कासित हूँ
हूँ स्वर्णमूर्तियों में रूपित
निज घर में ही निर्वासित हूँ
हे सूर्यवंश उन्नायक राम
अपमानों के तीर क्षरो, मैं तब मानूँ
तारा सिया अहिल्या मैं
हूँ दामिनि भी पांचाली मैं
कैसा विधि ने लेख लिखा
हूँ मातरूपिणी गाली मैं
हे देवरूप अवतारी राम
कलियुग जन में धीर भरो, मैं तब मानूँ
- भावना तिवारी
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३ |
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