राम मेरी पीर पढ़ लो
 

 
राम! मेरी पीर पढ़ लो!
सारे दुख अवसाद हर लो!

हैं हृदय में वेदनायेँ
तम में सारी हैं दिशाएँ
आज दुखमय हो रहीं हैं
सब मेरी धमनी शिराएँ
दिन महीने बीतते हैं
मेरे कंटक
दूर कर लो!

जीत कर लंका को आए
संग में हनुमान लाये
सिया अर्धांगी तुम्हारी
आपका संग नित्य पाये
सरल मन सीता पे राघव
अब जरा
विश्वास धर लो!

राम!
मेरी पीर पढ़ लो!
सारे दुख अवसाद हर लो!

- आभा सक्सेना दूनवी
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter