श्रीराम आएँ बस दुबारा
 

 
श्रीराम का बस हो इशारा
अब यहाँ पर

संस्कारों की
हिली है जड़ घरों में
चोट रिश्तों को मिली है अब घरों में
मायने बदले हैं मर्यादाओं के अब
नींद पुश्तों की खुली है
अब घरों में

श्रीराम का ही है सहारा
अब यहाँ पर

भूख सत्ता
की बढ़ी है डर नहीं हैं
राक्षसी प्रवृत्ति बेअसर नहीं है
जा छिपे हैं भ्रष्ट औरों के बिलों में
साँप बिच्छू का कोई भी
घर नहीं है

श्रीराम आयें बस दुबारा
अब यहाँ पर

- आकुल
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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