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पापा! जब मैं छोटा था,
आप उतनी बाते नहीं करते थे,
जितनी ''माँ'' करती थी।
पापा!
कभी-कभी जब ज़िद करता था,
रोता था, चुप नहीं कराते थे,
''माँ'' दौड़ी चली आती थी।
पापा!
आप हर छोटी-बड़ी बात पर,
लम्बा भाषण दिया करते थे
और ''माँ''
गोद में उठाकर चूम लिया करती थी।
पापा!
मुझे लगता था,
''माँ'' ने मुझे आपार स्नेह दिया,
आपने कुछ भी नहीं,
आप मुझसे प्यार नहीं करते थे।
मगर पापा!
आज जब जीवन की,
हर छोटी-बड़ी बाधाओं को,
आपके ''वे लम्बे-लम्बे भाषण'' हल कर देते है,
मैं प्यार की गहराई जान जाता हूँ
पापा!
अब मैं समझ गया हूँ,
आपके ''भाषण'' का महत्व भी,
''माँ'' के प्यार से कमतर नहीं
मेरी सफलता के हर कदम पर,
आपकी आँखों से,
जो बरबस छलक जाता है,
बरसो से दबा, प्रेम हैं...
पापा!
अब क्या कहूँ,
आप समझ रहे है ना?
गिरिराज जोशी
९ जून २००८
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