पिता की तस्वीर पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
क्षणिकाएँ
पिता के लिए
यहीं कहीं बिखरी है राख तुम्हारी यहीं कहीं से वह चिनगारी मेरे भीतर समा गई है
- प्रेम शंकर शुक्ल
बाबू जी
बाबू जी खेत में खड़ी फसल हैं हम उन्हें काटते हैं कूटते हैं फिर उन्हें बेंच के अपना-अपना हिस्सा रख लेते हैं
- मनीष वंदेमातरम
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