तुमने जितना बड़ा आकाश दिखाया था मुझे
वह अब कितना छोटा हो गया है
तुमने जितनी बड़ी दिखाई थी वह धरती
अब कितनी छोटी हो गई है
कि तुम्हारे पैर धरने जितनी जगह भी इसमें नहीं
तुम जिन्हें मुझे दिखाया करते थे
अब उन तारों और नक्षत्रों के पार कहाँ चले गए हो
पता नहीं किन नक्षत्रों की रोशनी लाने
पता नहीं किन सूर्यों की धूप लाने
पता नहीं किन कामधेनुओं को घर बुलाने
तुम जंगल में गए और लौटे नहीं
क्या तुम उस अंधेरी गुफा में चले गए हो
जहाँ एक बार
जाने पर कोई नहीं लौटता
ऋतुओं के पहले पहले फल फूल
तुम मेरे लिए लाए
पहला नवान्न, गुड़ की पहली डली,
सद्य:प्रसूता गौमाता का नया दूध
और बावड़ी का अमृत सा पानी!
कितना मीठा है कौन सा अमरूद
किसके खेत की मक्की मीठी है सफ़ेद
और एक भुट्टे के कितने व्यंजन बताए तुमने।
इस देह में जितना जो खून है
तुम्हारा बनाया है जो भी रस है
इस देह में जितना जो लोहा है
उसे तुमने अपने हाथों से गढ़ा है
यह देह तुम्हारी तपाई हुई है
तुम्हारी बनाई हुई है
तुम्हारी नहलाई हुई है मेरी यह देह
आखिर में तुम्हारी देह का इस्पात भी
मोम की तरह गल गया था
काल की गदा की मार से
मैंने उसे पौलीथीन की थैली में भरा
और उज्जैन में शिप्रा में बहा आया।
तुम आओगे लौट कर
कभी गल्ले में पैसे गिनते
कभी भीलों के दुखदर्द सुनते
आड़े और गाढ़े समय में
उनके काम आते
शहर से लाई अपनी दवा में से उन्हें दवा देते।
तुम आओगे
राख में चिनगारी ढूँढते
सावन छत पर कवेलू जमाते
गली के आवारा कुत्तों और शराबियों से
भले घर की स्त्रियों को बचाते
तुम उस गिलहरी के लिये
एक अमरूद रखोगे
जिसने राम जी की सेवा की है
और सुनहरी हुई है
तुम उस ईश्वर का शुक्रिया अदा करोगे
जो अलाव के भीतर बिल्ली के बच्चों को ज़िन्दा रखता है।
- राजेन्द्र उपाध्याय
|