भरी धूप में छाँव सरीखे
तूफ़ानों में नाव सरीखे
खुशियों में सौ चाँद लगाते
साथ-साथ आशीष पिता के
हाथ पकड़ कर
भरी सड़क को पार कराते
उठा तर्जनी
दूर कहीं गंतव्य दिखाते
थक जाने पर गोद उठाते
धीरे-धीरे कोई कहानी कहते जाते
साथ-साथ आशीष पिता के
दिन भर खटते
शाम ढले पर घर को आते
हरे बाग में खेल खिलाते
घास काटते
फूलों को मिल कर दुलराते
तार जोड़ते नल सुधराते
साथ-साथ आशीष पिता के
- पूर्णिमा वर्मन
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