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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 

तुम जब तक हो

तुम जब तक हो
सारे दुख दो पल के लगते हैं
बहुत बोझ है
लेकिन कन्धे हलके लगते हैं

दुनिया से लड़ना है
संघर्षों में जीना है
कभी खून का घूँट
कभी बस आँसू पीना है
पीड़ा मेरी
नयन तुम्हारे छलके लगते हैं

मुरझायेंगे तो
कोई तो है जो सींचेगा
गाड़ी अटकेगी तो कोई
है जो खींचेगा
बूढ़े कर जैसे
प्रतीक सम्बल के लगते हैं

बैठे–बैठे पल में
हर गुत्थी सुलझाते हो
राह दीखती नहीं जहाँ
तुम राह सुझाते हो
बस दो रोटी
कुछ दाने चावल के लगते हैं

– रविशंकर मिश्र 'रवि'
१५ सिंतंबर २०१४

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