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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 

ओ पिता!

ओ पिता!
यह गगन सागर
ये शिखर वटवृक्ष
कोई भी उपमा तुम्हारे
नहीं है समकक्ष

व्योम का तो एक गुण
उसका अमित फैलाव
पर टिका है धूप बादल
हवा पर बर्ताव
पर तुम्हारी दृष्टि चिंतन
नील नभ के पार
एक ही धुन
आत्मजों के
सुयश का विस्तार
व्यूह रचना काल की
सम्मुख तुम्हारा वक्ष

सिन्धु कुछ हद तक तुम्हारी
प्रकृति के अनुरूप
एक सात्विक शांति
मुख पर
उर अनल के कूप
भूधरों से भी समुन्नत
अडिग दृढ व्यक्तित्व
नित्य तुमसे अर्थ पाता
है नये अपनत्व
घूमती जिस पर गृहस्थी
तुम वही हो अक्ष

वृक्ष निस्संदेह वट के
छाँव के उपमान
पर कहाँ इनके तले
संभव अलग पहचान
एक तुम जिसकी छुअन से
लहलहाते पात
कुशल शिल्पी विश्वकर्मा
हे जनक! प्रणिपात
अगरु तुम जिसकी महक से
महमहाते कक्ष
ओ पिता!

- रामशंकर वर्मा
१५ सिंतंबर २०१४

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