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पिता के लिये
पिता को समर्पित
कविताओं का संकलन
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बाबू जी |
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दिन दहाड़े लुट गई
दूकान बाबू जी
जी रहे हैं
जिंदगी बेजान बाबू जी
आदमीयत के शहर में
लोग अंधे हैं
लोक घायल
तंत्र के कमज़ोर कंधे हैं
चम्बली परिवेश
नगर मसान बाबू जी
जा रहे हैं चाँद पर
बस्ती बसाने हम
साथ में है भूख
भ्रष्टाचार, भय का गम
देखिए मालिक हुए
दरबान बाबू जी
नाश्ते में आत्महत्या
रेप के चर्चे
लंच में लाखों घुटाले
खेल के चर्चे
डिनर में परसा गया
ईमान बाबू जी
भावनाओं की चिताएँ
रोज़ जलती हैं
सैकड़ों धर रूप
ये राहें बदलती हैं
हौंसले, टूटे हुए
धनुबान बाबू जी !
- मधुकर अष्ठाना
१५ सिंतंबर २०१४ |
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