|
1
पिता के लिये
पिता को समर्पित
कविताओं का संकलन
|
|
|
पिता
|
|
घर को
घर रखने में
हर विष पीते रहे पिता
आँखों की
गोलक में संचित
पर्वत-से सपने
सपनों में
संबंधों की खिड़की
खोले अपने
रिश्तों की चादर
जीवन-भर
सीते रहे पिता
अपने ही साये
पथ में
अनचीन्हे कभी हुए
कभी बिंधे
छाती में चुपके
अपने ही अँखुए
कई दर्द
आदमकद
पल-पल जीते रहे पिता
फरमाइशें, जिदें-
जरूरतें
कन्धों पर लादे
एक सृष्टि के लिए
वक्ष पर
एक सृष्टि साधे
सबको भरते रहे
मग़र
ख़ुद रीते रहे पिता
- जय चक्रवर्ती
१५ सिंतंबर २०१४ |
|
|
|
|
|
|