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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 

पिता जब नहीं हैं

पिता जब नहीं हैं लग रहा है
वे आसमान थे
तब हमारे हिस्से में छाँव ही छाँव थी
वे धूप के नियंता थे!
वे हमारे लिए नींद
और स्वप्न रचते थे
छेनी हथौड़ी लिए समय के अँधेरे पर
रोशनी की तस्वीर चुनते थे
पिता जब नहीं हैं लग रहा है
वे बाजीगर थे
स्याही और सरकंडे कोरे
पन्ने जाने कहाँ से लाते थे
वे हमारी पोथी और बस्ता थे
लेकिन पिता जाने क्यों
छुपकर रोते थे!
आदि मानव की तरह या
आसमान की तरह
.हम भी सदियों तक रोयेंगे
उल्कापात में टूटी किसी टहनी की तरह!

- प्रज्ञा पांडे
१५ सिंतंबर २०१४

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