|
1
पिता के लिये
पिता को समर्पित
कविताओं का संकलन
|
|
|
पिता और दरवाजा |
|
मेरे पिता और
आँगन का दरवाजा
दोनों जन्मे थे एकाध घंटे के अन्तराल से
दोनों ही समय के साथ वृद्ध होते चले गए
पुराना चरमराता दरवाजा
जिसका चौखट, पल्ला फँसे हैं ढीले - ढीले
पल्ले और कब्जों की
अलग होने की सतत क्रिया चालू है
और पिता के पिंजर से
शनैः शनैः अलग होने को कसमसाती साँसें
मैंने कई बार देखा है
पिता को
अकेले होने का अनुमान लगा
दालान में लेटे - लेटे
आँगन के दरवाजे को अपलक ताकते
देखा हूँ, उनके चेहरे पर
क्रोध, उद्विग्नता के भावों के बीच
चुपके से टहल जाती स्मित को
मानो पिता और दरवाजे के बीच
बचपन से जवानी और जरा तक के सफ़र पर
हो रहा हो मूक सम्वाद
दरवाजा जो आज
एक हल्का धक्का भी सह नहीं सकता
और पिता, जो चाह कर भी
घर के काम में हाथ नहीं बटा सकते
फिर भी दोनों मेरे लिए मूल्यवान हैं
वो जर्जर दरवाजा
मेरे अन्दर जीवित रखे है
सुरक्षित होने अहसास
और पिता
जीवित रखे हुए हैं निश्चिन्तता
और बनाये हुए हैं
पूरे घर को जीवन्त
- अनिल कुमार मिश्र
१५ सिंतंबर २०१४ |
|
|
|
|
|
|