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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 


पिताजी के लिये



जिस पदचाप से
चौकन्नी हो जाती हवेली
जिस रौबीली आवाज़ से
सहम जातीं भीतें
दुबक जाते बच्चे
पसर जाती खामोशी
समय के कुएँ में
पैठता गया रौब
अब प्रतिध्वनि पर
नहीं ठहरता कुछ
चलता रहता है यंत्रवत
दैनिक कार्यकलाप।



जब माँ थी
मालिक थे पिता
घर-बार-संसार
चलता मर्ज़ी से
माँ के जाते ही
मुँद गए किवाड़
अनाथ हुआ घर
आधे-अधूरे
हो गए पिता।

- सुशीला शिवराण
१५ सिंतंबर २०१४

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