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पिता के लिये
पिता को समर्पित कविताओं का संकलन
 

 


कैसा लगता है

अब मैं क्या बतलाऊँ तुमको कैसा लगता है.
है तेज़ धूप और बिछड़ा हमसे साया लगता है

चाँद की गोदी में छुप बैठा नन्हा तारा भी
बाबा की गोदी में बचपन जैसा लगता है

देख तुम्हारी तस्वीरें ख़ुश हो लेती हूँ मैं
आँखों में खारे पानी का दरिया लगता है

भैया जब भी सर पर मेरे हाथ ज़रा रख दे
उसका चेहरा बिलकुल बाबा तुम-सा लगता है

तारों से तस्वीर तुम्हारी बन जाती है जब
बादल का हर टुकड़ा उसको तकता लगता है

जब तक थे तुम सब रिश्तों में थोड़े थोड़े थे
पर अब सारा आलम बाबा तुम-सा लगता है

क्यों रूठे तुम बिटिया ने यह बतलाया तो था
पीहर पापा के कारण तो प्यारा लगता है

- सुवर्णा दीक्षित
१५ सिंतंबर २०१४

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