गमों की आँधी में,
उजड़ गया मेरे मन का चमन
अब मुझे चाहिए
खुशियों से हँसता वसंत।कल के
अंधेरों में,
खो न जाए आज-कल
अब मुझे चाहिए
उजालों से निखरा वसंत।
तन संसारी हो, मेरा
मन हो जाए संत
अब मुझे चाहिए
दानिशों से दिखता वसंत।
दिन जैसे निखरे,
जीवन साँझ जैसे जाए ढल
अब मुझे चाहिए
मसीहों से मिलता वसंत।
मेरे मन की खुशबू से,
महक जाए दिग-दिगंत
अब मुझे चाहिए
गुलाबों से खिलता वसंत।
फिर न कोई तोड़ पाए,
मेरे सपनों का महल
अब मुझे चाहिए
हौसलों से चलता वसंत।
'मीना' जगत में,
इच्छाएँ हैं अनंत
अब मुझे चाहिए
कोशिशों से सजता वसंत।
-डॉ मीना कौल |