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रंगों की झोली
वासंती मौसम में
आई ले होली।महुआ चुआ
पी-पी रस जी भर
बौराई हवा।
वृक्षों को बदा
देखना पुनर्जन्म
मधुमास में।
कोयल कूकी
फूटे कंठ मूक-से
अमराई के।
होली मनाई
साल भर खून से
रंग से आज।
गर्मी बढ़ी तो
बढ़ा ली पीपल ने
हरियाली भी।
फसलें झूमीं
वेद मंत्र गूँजा है
खेतों में फिर।
सीना ताने हैं
कमाऊ पूत जैसे
पकी फसलें।
कुहरे से ही
डर जाएगा कैसे
सूर्य, सूर्य है।
-कमलेश भट्ट कमल |
होली की आग
अन्याय के ख़िलाफ़
है इंकलाब।श्याम है रंग
बन राधा रमण
आ गई होली।
नाचूँगा संग
डाल दे श्री मुझ पे
होली का रंग।
प्रभु का लाल
माटी से खेले माटी
होली गुलाल।
होली का रंग
प्यार का कैनवास
गाल गुलाबी।
होलिका खड़ी
पड़ी है लकड़ियाँ
प्रह्लाद आ!
श्री रंग बन
लगा रंग पे रंग
यों खेल होली!
है कैनवास
खेल पारस रंग
होली के संग।
दीप में भर
रंग, बाती तू बन
आज है होली।
-पारस दासोत |