फागुन के रंग
नवयौवन उमंग
अंग-अंग नितनव तरंग
सजनी साजन के है संग
फागुन के हैं रंगढोलक की धम धम
धमाक धमधम
दिल की धक धक धक से मिला हुआ सम
आज़ाद उड़े रे मन पतंग
आज़ाद उठे पग
बिन घूँघर छम-छम
राधा कृष्ण का आलौकिक नर्तन
धरती व्योम का आज है संगम
कल का कोई अस्तित्व नहीं है
कल और कल बेताल असंगत
केवल ये ही पल है सक्षम
बस ये ही इक पल है
नवयौवन उमंग संग
फागुन के रंग संग
फागुन के हैं रंग।
-प्रेम माथुर |