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फागुन के दिन चार सखी मेरी
आया मेघ मल्हार सखी री
झूला झूले मस्त जवानी
पा के प्रिय का प्यार सखी रीखेतों में
खलिहानों में भी,
नाचे धान हज़ार
छलकी सूरज की किरणें जब,
उन का हुआ सिंगार
रोटी मक्के की सरसों का साग
संग अचार सखी री
पीली ओढ़े चुनरी सर पे,
रंग बिरंगी गागर भर के
अलबेली-सी मस्त जवानी,
चलती है हर नार सखी री
चूड़ी खनकी रंग रंगीली,
लाल हरी और नीली पीली
चमके चंदन हार सखी री,
-देवी नागरानी |