आज है मधुमास सूना
शून्य पथ पर मैं खड़ी हूँ
सोचती हूँ बात बीती
उर में गहरी पीर व्यापी
और मेरी दृष्टि रीती
बढ़ रहा है दर्द दूना
आज है मधुमास सूना
सिसकता सुकुमार जीवन
आपदाओं से घिरी हूँ
हो चुका निष्प्राण चूँकि
मैं अभागी ही निरी हूँ
हर्ष का संसार ऊना
आज है मधुमास सूना
दोष क्या मैं दूँ किसी को
भाग्य ने मुझको गिराया
ठोकरें लगती रहीं पर
कब किसी ने है उठाया
पाप क्यों है मुझको छूना
आज हैं मधुमास सूना।
-तोषी त्रेहन |