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पीत पीत हुए पात, सिकुड़ी सिकुड़ी सी रात
ठिठुरन का अंत आ गया।
देखो वसंत आ गया।।मादक सुगंध
से भरी, पंथ-पंथ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक कूक कर, इठलाती फिरे बावरी
जाती है जहाँ दृष्टि, मनहारी सकल सृष्टि
लास्य दिगदिगंत छा गया।
देखो वसंत आ गया।।
शीशम के तारुण्य का, आलिंगन करती लता
रस का अनुरागी भ्रमर, कलियों का पूछता पता
सिमटी-सी खड़ी भला, सकुचाई शकुंतला
मानो दुष्यंत आ गया।
देखो वसंत आ गया।।
पर्वत का ऊँचा शिखर, ओढ़े है किंशुकी
सुमन
सरसों के फूलों भरा, मोहक वासंती उपवन
करने कामाग्नि दहन, केसरिया पहन वसन
मानो कोई संत आ गया
देखो वसंत आ गया।।
-शास्त्री नित्यगोपाल कटारे |