घर-घर चर्चा हो रही फूलों में इस बार
लेकर फागुन आ रहा रंगों का त्योहार
लो वसंत फिर आ गया मचा हुआ है शोर
उचक-उचक कर झाँकती कली-कली मुँहजोर
गंधों से आँचल भरा बगिया ने चुपचाप
छुप-छुप के आने लगे भौंरे अपने आप
हरसिंगार पगला गया फूल बहुत बेताब
पढ़ने को कोई नहीं कोने खुली किताब
गीत हवा के सुन रहे खोले कान मकान
फुलवारी में सज रही गंधों की दूकान
फिर वसंत का पाहुना आया घर के द्वार
वनदेवी करने लगी फूलों से शृंगार
फागुन लेकर आ गया रंगों की सौगात
फूल पंखुड़िया पेड़ मिल करते सौ-सौ बात
-डॉ. शैल रस्तोगी |