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धूप हो
गई गुनगुनी
चला बोरिया बाँध शरद घर,
और धूप हो गई गुनगुनी
सुबह जागी धुंध चीरकर
और भोर हो गई लावनी
मदन रंग का आँचल फहरा,
खेतों पर फिर यौवन आया
गगरी खनकी फिर पनघट पर,
सकल धरा हो गई फागुनी।
मैं तुझ
पर बलिहारी
एक बार फिर जाऊँ फागुन,
मैं तुझ पर बलिहारी
ब्रज के रसिया, मथुरा गोकुल, नंद गाँव
बरसाना
गेहूँ बाली साग चने का, धान भूनकर खाना
सरसों, दुआँ, तारामीरा,
टेसू, भंग पिचकारी
खेत ट्रैक्टर, ट्यूब वेल हिरयाली पीले
फूल
हरी गुलाल, भुड़भुड़ी अभ्रक, रंगी पंथ की धूल
कोड़ा सोंटा महका महुआ,
इक गोपी ब्रजमारी
-राकेश खंडेलवाल |