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बाजे ढफ, ढोल और चंग, आज फिर फागुन आयो
रे!
बदली में छायो रंग,
आज फिर फागुन आयो रे!चूनर भी
हो गई लाल, गाल दमकें सूरज से,
भीगे कंचन सो अंग,
आज फिर फागुन आयो रे!
खेलें आ हिलमिल आज, बजाएँ मन की बंसी,
राधा किसना के संग,
आज फिर फागुन आयो रे!
करके बरजौरी आज, भेंट के अंग लगायो,
गोकुल है सारो दंग,
आज फिर फागुन आयो रे!
जित देखो तित है धूम, घनी होली छाई
है,
सारे कुआँ में भंग,
आज फिर फागुन आयो रे!
-संजय विद्रोही |