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ओढ़ बसंती चूनर पुरवा,
द्वारे पर काढ़े रंगोली
जाते जाते शरद एक पल
फिर रुक सबसे करे ठिठोली
चौपालों पर के अलाव अब
उत्सुक होकर पंथ निहारें
सोनहली धानी फसलों की
कब आकर उतरेगी डोली
पल्लव पल्लव ले अंगड़ाई,
कली कली ने आँखें खोली
निकल पड़ी फिर नंद गाँव से
ब्रज के मस्तानों की टोली
बरगद पर, पीपल पर बैठी
बुलबुल, कोयल, मैना बोली
रंगबिरंगा फागुन आया,
झूमो नाचो खेलो होली
मौसम ने है रंग भरी मस्ती
की आज किवड़िया खोली
चलो लूट लो जितनी चाहे
हाथ बढ़ाओ भर लो झोली
थिरके पायल लहरे चूनर
उठें खेत से फिर आलापें
पगडंडी नाचे पनघट के
साथ-साथ बन कर हमजोली
-राकेश खंडेलवाल |