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         शिक्षालय मन्दिर रहे

 

शिक्षालय मन्दिर रहे जिन पर था अभिमान
भूले पावन लक्ष्य वे जिन्हें बाँटना ज्ञान

शोषण, अत्याचार के
बन बैठे पर्याय
केवल हुए दुकान अब
बदल गया अभिप्राय
अनाचार करने लगे डगर डगर शैतान

गये गुरू से सीखने
भोले और अबोध
कदाचरण दुर्भाव का
तनिक न जिनको बोध
हुए प्रताड़ित छिन गई निश्छल मृदु मुस्कान

हो जाते प्राणांत तक
ऐसे भी दृष्टांत
उर धीरज कैसे धरें
माता पिता अशांत
नर पिशाच पलते जहाँ कैसा हिन्दुस्तान ?

- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
१ सितंबर २०२४

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