पढ़ाई के पुराने दिन,
नहीं हम भूल पाते हैं
इमारत स्कूल की अब तो
रही है शेष यादों में
नई है नीति शिक्षा की
मगर उलझी विवादों में
पुराने खिलखिलाते पल
बहुत अब मुस्कुराते हैं
लिए जब हाथ में तख्ती
लटकता साथ था झोला
बहुत मन मुस्कुराता था
किसी ने प्यार से बोला
कभी वो स्लेट पर लिखना
कभी तख्ती सुखाते हैं
सभी सहपाठियों को अब
बहुत हम याद करते हैं
उलझना साथ रहना फिर
समय के साथ ढलते हैं
गुजारे साथ के मृदु पल
कहाँ कब भूल पाते हैं
समय बदला नहीं बदली
मगर वो याद है अब भी
पकौड़ी चाट का चटपट
स्मरण वह स्वाद है अब भी
मिला कोई न सहपाठी
बहुत दिन कसमसाते हैं
- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१ सितंबर २०२४ |