ज्ञान के भंडार गुरुवर
पथ प्रदर्शक है हमारे
डगमगाती नाव जीवन
खे रहे गुरु के सहारे
गुरु की पारस दृष्टि से ही
मन ये कुंदन सा निखरता
कोरा कागज सा ये जीवन
गुरु की गुरुता से महकता
देवसम गुरुवर के हमने
दण्डवत हो पग-पखारे
गुरु कृपा से ही तो हमने
नव ग्रहों का सार जाना
भू के अंतस को भी समझा
व्योम का विस्तार जाना
अनगिनत महिमा गुरु की
सभी का जीवन सँवारे
तन में मन और मन से तन
के गूढ़ को बस गुरु ही जाने
बुद्धि के बल मन को साधे
चित्त चेतन के सयाने
अथक श्रम से रोपते
अध्यात्म शिष्योद्यान सारे
- सुधा देवरानी
१ सितंबर २०२४ |