द्वार खोलो
इस गली में सुबह फूटी
.
झरी दीवार के पत्थर
चमक कर झिलमिलाए है
गली में बाँटते सोना,
सुबह के दूत आए हैं
ये उजासों की तरफ
बढ़ते हुए नन्हें कदम हैं
फूल चंदोवे बने हैं
धूप भी
कदमों में आकर
जगमगाई है -
एक पूरी नयी पीढ़ी
आह्लादों की नयी दुनिया समेटे
खिलखिलाई है
.
द्वार खोलो
अंकुरित हो नयी बूटी
द्वार खोलो
इस गली में सुबह फूटी
खिलखिलाहट में बसा ओंकार
नभ को चीर देगा
और मुस्कानों का सौरभ भी
धरा को सींच देगा
ये हवा का रुख बदलते
दृढ़ इच्छाओं के कदम हैं
गगन स्वस्ति से भरे हैं
किरण ने
आशीष की चुनरी
ओढ़ाई है
यह नयी पीढ़ी
संभावनाओं की नयी दुनिया समेटे
जगमगाई है
.
द्वार खोलो
समय को दो जन्मघूँटी
इस गली में सुबह फूटी
अंकुरित हो नयी बूटी
- पूर्णिमा वर्मन
१ सितंबर २०२४ |