कुछ सीखा कुछ-कुछ भूल गये
कुछ रखा याद मन में
शाला का अनुशासन बंधन
रहा साथ मन में
मन भटका तो कभी पलायन का भी दौर रहा
गुरुवर ने पर साध लिया शाला में ठौर रहा
कठिन विषय को काट-छाँट कुछ ऐसा समझाया
बरसों बीते लेकिन अब भी
बसा है चेतन में
जब भी मन औ बुद्धि बीच कुछ अटका द्वंद्व रहा
फंदे काटे हर उलझन के मन आनंद रहा
आकर्षण में फँसे अगर हम लक्ष्यों से भटके
उंगली पकड़ी राह दिखाई हर
बीहड़ वन में
सपने देखे नये नये और उनकी ओर बढ़े
जीवन में आगे बढ़ने के नव सोपान गढ़े
फिर-फिर गिरना गिरकर उठना सीख लिया ऐसा
मंत्र कोई जीने का जैसे
सीखा जीवन में
- पूर्णिमा जोशी
१ सितंबर २०२४ |