देह-पाठशाला में आत्मा
गुरु-जीवन से सीख गयी
जपा ॐ के म् से माँ को
जब पहली किलकारी में
कहा सभी ने पुष्प खिला है
कुल की नव फुलवारी में
आँचल विद्यालय सा सोहा
मातु शिक्षिका दीख गयी
दहलीजों से बाहर आते
पथ ने खेल दिखाया था
उत्तरजीवी होना रण है
मोड़ों ने बतलाया था
कर्मों के दंगल में अटके
यौवन की तारीख गयी
तीजे से चौथापन बोला
मुट्ठी अबतक खाली है
करो कर्म के झट हस्ताक्षर
घंटी बजने वाली है
नहीं किसी की सुनती है वह
माँग पीढ़ियाँ भीख गयी
- कुमार गौरव अजीतेन्दु
१ सितंबर २०२४ |