जीवन भी एक पाठशाला
पाठ पढ़ाती हर दिन
पथ को सुगम बनाती है वह
बीन बीनकर हर पिन
सभी किताबें सिखलातीं हैं
सुनो अधिक कम बोलो
जीवन अनुभव बतलाता है
अपना अंतस खोलो
राह हरेक दुर्गम है लेकिन
बढ़कर गले लगेगी
कभी न होगी आँख किसी की
फिर तो सपनों के बिन
रिश्तों की मण्डी में रिश्तों
के व्यापारी बैठे
धन ने बना मदारी छोड़ा
अपनी ऐंठ में ऐंठे
जंग लगे इस जग के पाँवों
में फिर से गति होगी
जीवन फिर से सरसाएगा
जी लेगा फिर हर छिन
दुख-सुख में समता की बातें
इस शाला की सीखें
जात-धर्म भाषा के झगड़े
में ये कभी न दीखें
समझ मुसाफ़िर जग सराय में
हो फ़क़ीर चलना है
सभी पराए अपने होंगे
हो ना पाएगा सिन
- गीता पंडित
१ सितंबर २०२४ |