पाठशाला खुला दो, महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे !
आम का पेड़ ये
ठूँठे का ठूँठा
काला हो गया
हमरा अँगूठा
यह कालिख हटा दो, महाराज
मोर जिया लिखने को चाहे
पाठशाला खुला दो, महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे !
’ज’ से ज़मींदार
’क’ से कारिन्दा
दोनों खा रहे
हमको ज़िन्दा
कोई राह दिखा दो, महाराज
मोर जिया बढ़ने को चाहे
पाठशाला खुला दो, महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे !
अगुनी भी यहाँ
ज्ञान बघारे
पोथी बाँचे
मन्तर उचारे
उनसे पिण्ड छुड़ा दो, महाराज
मोर जिया उड़ने को चाहे
पाठशाला खुला दो, महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे !
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
१ सितंबर २०२४ |