भावुक होते हुए क्षणों की
अकुलाहट
अक्षर अक्षर गुरु का दिया हुआ
दान...
मन के भीतर
उमड़ती घुमड़ती घटा सी
खलबलाहट...
फिर
नव रचना का सम्मान!!!
आज गुरु आदर्शो का
पट यों खोल रहे हैं
यथार्थ से मेरा नाता
फिर जोड़ रहे हैं
मुझपर अपने आशीष का
शब्दामृत ढोल रहे हैं!
मैं विस्मृत सी...
नवचेतना से भीगी
उनकी ही रचना
उनको ही समर्पित करती हुई
लेखनी पुनः प्रबल करती हूँ
नवचेतना के आनंद से
फिर फिर खिलखिलाती हूँ!!!
- अनुपमा त्रिपाठी
१ सितंबर २०२४ |