गुरुकुल जीवन में सदा,
रौशन करता राह।
तिमिर मिटाये राह का, मन में हो जो चाह।।
ज्ञान मिले जो जीव को, चक्षु तभी खुल जाय।
नीति समझकर जगत की, तिमिर तुरत धुल जाय।।
पाठ दिया जो नियम का, जीवन दिशा दिखाय।
गुरु-कुम्हार श्रम से गढ़े, जनम सफल हो जाय
जग शाला व्यवहार की, नित नव पाठ पढाय।
सद्भावों की नाव में, अनुभव भी गहराय।।
व्यापारों में लिप्त है, पग पग पर भरमाय।
ऐसी शाला हैं कहाँ, सच का पाठ पढ़ाय।।
- रेखा श्रीवास्तव
१ सितंबर २०२४ |