१
सोना करदे लौह को, सही
दिखाते राह।
शारद से पहले नमन, गुरु चरणों में चाह।
गुरु चरणों में चाह, भरे मेधा से प्याला।
जड़ता करते नाश, ज्ञान की उत्तम शाला।
कहे 'कुसुम' कर जोड़, बुद्धि का भर लो दोना।
गुरु प्रज्ञा आगार, शुद्ध हो जैसे सोना।
२
पढ़ लो
गुण लो सीख लो, दो गुरुवर को मान।
इधर उधर मत ताकना, नहीं मिलेगा मान।
नहीं मिलेगा मान, बोध से होंगे वंचित।
तन्मय होकर सीख, ज्ञान भी होगा संचित।
कहे 'कुसुम' इक बात, धैर्य से आगे बढ़ लो।
जाकर गुरु के पास, कलाएँ सारी पढ़ लो।।
३
शाला
जाकर जो करे, शुभ विद्या स्वीकार।
छात्र नहीं वे मानते, जीवन में फिर हार।
जीवन में फिर हार, मान शिक्षक का करते।
मन में रखते धैर्य, ज्ञान से झोली भरते।
'कुसुम' सीख व्यवहार, जगत में करे उजाला।
रहे सफलता साथ, पढ़ें जो जाकर शाला।।
- कुसुम कोठारी प्रज्ञा
१ सितंबर २०२४ |