पीढ़ी से पीढ़ी करे,
अर्चित जग में ज्ञान
गुरू औ' शिष्य परम्परा, है प्राचीन विधान।।
प्रथम गुरु माता बने, पिता सिखाए कर्म।
जीवन के अनुभव सदा, सिखलाते हैं धर्म।।
स्नेह परस्पर मित्रता, आदर श्रद्धा मान ।
कपट दुष्टता दूर हों, संग रहे स्वाभिमान।।
गुरुकुल से विद्या मिले, सेवा करते शिष्य।
विविध विधाएं सीख के, करते सफल भविष्य।।
बदले शिक्षा नियम सब, समय समय के साथ।
जीवन यापन की क्रिया, विषय बदलते हाथ।।
धर्म कर्म आध्यात्म हो, शस्त्र शास्त्र विज्ञान।
अर्थ शास्त्र राजनीति संग, औषधि रोग निदान।।
आवश्यक सब विषय जो, नित नव आविष्कार।
सकल विश्व में कर सकें, जन जन का उपकार।।
हर बालक या बालिका, पाए समुचित ज्ञान।
शिक्षा के हथियार से, मिटे सकल अज्ञान।।
गुरु भी जाने ज्ञान का, कितना मोल महान।
लालच के वश नहिं बने, शिक्षा एक दुकान।।
गुरु ब्रह्मा और विष्णु से, शिव शंकर सम जान।
उनकी किरपा से मिले, कष्टों का समाधान।।
- ज्योतिर्मयी पंत
१ सितंबर २०२४ |