मिली गुरुओं से
जीवन की बहर और ज्ञान की पूँजी
नमन उनको जो दी हमको वर्ण-वरदान की पूँजी
सदैव आदर्श मर्यादा दया करुणा को अपनाकर
वो कहते थे रखो अक्षुण्ण स्वाभिमान की पूँजी
वही संस्कार घर, बाहर, सकल संसार में बोलें
कनिष्ठों और वरिष्ठों को जो दी सम्मान की पूँजी
जिसे तुलसी कबीरा सूर मीराँ ने था अपनाया
बचानी है मनुजता के उसी संविधान की पूँजी
ये जीवन पाठशाला है यहाँ क्या है व क्यों है 'रीत'
पढ़ी जिनसे, उन्होंने दी जगत-विज्ञान की पूँजी
- परमजीत कौर 'रीत'
१ सितंबर २०२४ |