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       डोर से टूटी पतंगें

 
बंधनों से मुक्त होकर
तुम नहीं उड़ पाओगे

डोर से टूटी पतंगे उड़ नहीं सकतीं कदाचित
डोरियाँ टूटें अगर तो जुड़ नहीं सकतीं कदाचित
गाँठ आश्वासन सरीखी भय उड़ानों में रहेगा
जब खुलेगी गाँठ
अम्बर से धरा पर आओगे


बंधनों ने ही यहाँ विश्वास को बाँधे रखा है
भावना ने जिस तरह अभिव्यक्ति को काँधे रखा है
साथ से ही छू सके हम चाँद-तारे इस जगत के
साथियों के बिन अभागे!
उम्र भर पछताओगे

- शिवम 'खेरवार'
१ फरवरी २०२१

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