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पंख हौसलों के फैलाकर

 
पंख हौसलों के फैलाकर
ऊपर उड़ती जाएँ
फिरें पतंगे आसमान में
लेकर नव इच्छाएँ

डोरी रोके पंथ मगर वह
तनिक नहीं घबरातीं
गली मुहल्लों से ऊपर उठ
राहें नयी बनातीं
बाधाओं को तोड़ जीत की
ध्वजा नित्य लहराएँ

दुनिया खूब तमाशा देखे
हँसकर पीटे ताली
कोशिश करनेवालों का कब
दाँव गया है खाली
खुद पर रख कर सदा भरोसा
नील गगन पर छाएँ

खूब नचाती हमें जिन्दगी
थाम हमारी डोरी
किन्तु परिश्रम से हम पाते
मिश्री भरी कटोरी
कठिन तपस्या और जतन से
हट जाती दुविधाएँ

सपनों का आकाश मिलेगा
अपने ही बल बूते
सिखा रही हैं पाठ पतंगे
नभ को छूते छूते
बढ़ो चढ़ो तुम उच्च शिखर पर
मत खोजो सुविधाएँ

- पुष्प लता शर्मा

१ फरवरी २०२१

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