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       पतंगबाजी: एक गीत

 
फगुनाई आहट भर से ही
भूले शिकवे
बिसरे गिल्ले

भाँति भाँति की उड़ें पतंगें
कोई एक-तावा कोई पिद्दी
आश्वासन की डोरें सबकी
चाहे मंझा चाहे सद्दी
इधर घसीटा मार रहे तो
उधर लड़ायें
ढिल्लम-ढिल्ले

धुंध कुहासे छंट जायेंगे
डोलेगा अब पवन वसंती
जन-गन-मन की पग-आहट से
मिट जायें ज्यों दुःख सामंती
पतझड़ से सूनी डालों में
फिर आयेंगे
किशलय किल्ले

- अनिल कुमार वर्मा
१ फरवरी २०२१

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