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       सद्भावों की पतंगें

 
सद्भावों की आज पतंगें
कटतीं गली - गली

गयी अवांछित हाथों में है
जब -जब इनकी डोर
खूब प्रपंची पेंच लड़ायें
गद्दी के बरजोर
जिनके हाथों में माँझा था
उनसे गयीं छली

लूट अस्मिता तार -तार धर
अबरी रहे मरोर
ये काटा वो काटाकाटा
करें सिरफरे शोर
ऊँचे कंगूरों से करते
बातें हैं छिछली

रहें समन्वित जन-गण सारे
हो न कहीं टकराव
बातें नभ से करें पतंगें
सहे न कोई घाव
समरसता की पारी खेले
पीढ़ी अब अगली

- अनामिका सिंह अना
१ फरवरी २०२१

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