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       पतंगें

 
वह
जो आसमान
हमारी कामनाओं
से भी ऊँचा
अनन्त असीम विशाल है
उसकी निस्सीमताओं में
उड़ते परिंदे
बेसाख़्ता
लाल नीले पीले हरे धूसर
काले और मटमैले
सदियों से लगातार
पर अब वही आकाश
दिनों दिन
बौना होता जा रहा है
क्योंकि
परिंदों ने आकाश को
नापना छोड़ दिया है
उनकी जगह
नए नए प्रकार की
नाना आकृतियों में ढली
रंग बिरंगी सजीली अद्भुत
पतंगों ने ले ली है
काग़ज़ी और बेजान
वे पतंगें
जिनके होने न होने से
कोई अंतर नहीं पड़ता
पर
उन परिंदों के न होने से
अंतर पड़ता है
और ख़तरा बढ़ जाता है
हमारे न होने का

- रंजना गुप्ता
१ फरवरी २०२१

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