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       पतंगें हैं या रेशमी-से ख्वाब

 
पतंगें हैं या रेशमी से ख्वाब
उड़ रहे हैं आसमानों में
ऊँचाईयों के नगर चूमती पतंग
रंगीन धागे को गले में बाँधे
ढूँढती नई मंजिल नई डगर

मस्त हवा के झोंको पर
इठलाये,,बादलों पर बैठ
परियों के लोक हो आये
तूफानों से टकराये, बल खाये
जब आये कोई हाथ मिलाने
तो गले मिले, और कट जाये

पतंग सी ये जिंदगी किस के हाथ
उड़ाए तो उड़े खींचे तो कट जाय
लगे कोई साथ भी है, पर साथ नहीं
दूर खड़ा, कहीं दूर थामे डोर
नहीं दिखता कहीं कोई
पर उलझाए


जीवन पतंग ही तो है
जब तक डोर जुड़ी खेल जारी है
जब टूट जाए साँसों की डोर
तन मन पंच तत्व में मिल जाय
रूह फना हो जाय
उस अनादि ईश्वर में मिल जाय.

- मंजुल भटनागर
१ फरवरी २०२१

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