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       बढ़ी पतंग

 
नभ को छूने बढ़ी पतंग
कहाँ किसी से डरी पतंग

मुश्किल में जब घिरी पतंग
मरते दम तक लड़ी पतंग

धनक सजा आकाश तले
खुलकर जब-जब हँसी पतंग

भले उड़ान उधारी है
पर इतरा कर उड़ी पतंग

गले लगी माँझे काटे
यों ही तो नहीं कटी पतंग

'रीत' हुआ उतना बौना
जिसकी जितनी चढ़ी पतंग

-परमजीत कौर 'रीत'
१ फरवरी २०२१

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