नव वर्ष
आया जब नव वर्ष होगा
नव उत्साह नव हर्ष होगा।
शत सूर्य से शोभित कल होगा
आस का उदित स्वर्ण कमल होगा
पंजों के बल जब उछलेगा
पहुँच में नभ का स्पर्श होगा।
दृष्ट तब गंतव्य होगा
अपूर्ण स्वप्न तब सत्य होगा
प्रेम की नव सरिता बहेगी
लुप्त तब प्रतिकर्ष होगा।
स्वर्ण तब तप्त होगा
लहू तब रक्त होगा
स्वर्ण लौह से बुने
ध्येय का उत्कर्ष होगा।
आया जब नव वर्ष होगा
नव उत्साह नव हर्ष होगा।
आशुतोष कुमार सिंह
|